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एह्यू॒ षु ब्रवा॑णि॒ तेऽग्न॑ इ॒त्थेत॑रा॒ गिरः॑। ए॒भिर्व॑र्धास॒ इन्दु॑भिः ॥१६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ehy ū ṣu bravāṇi te gna itthetarā giraḥ | ebhir vardhāsa indubhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। इ॒हि॒। ऊँ॒ इति॑। सु। ब्रवा॑णि। ते॒। अग्ने॑। इ॒त्था। इत॑राः। गिरः॑। ए॒भिः। व॒र्धा॒से॒। इन्दु॑ऽभिः ॥१६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:16 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् जन ! (एभिः) इन (इन्दुभिः) सोमलताओं वा चन्द्रकिरणों से आप (वर्धासे) वृद्धि को प्राप्त होते हो उनसे (आ, इहि) प्राप्त हूजिये (इत्था) इस प्रकार से (इतराः) पीछे की (ते) आपकी (गिरः) वाणियों को (सु, ब्रवाणि) उत्तम प्रकार उपदेश करूँ और आप (उ) तर्क वितर्क से सुनें ॥१६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य, हम लोग विद्याओं को पढ़कर सब को उपदेश देवें, इस प्रकार इच्छा करते हैं, वे हम लोगों को प्राप्त होवें ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यैरेभिरिन्दुभिस्त्वं वर्धासे तैरेहीत्थेतरास्ते गिरस्सु ब्रवाणि त्वमु शृणु ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (इहि) आगच्छ (उ) (सु) (ब्रवाणि) उपदिशानि (ते) तव (अग्ने) विद्वन् (इत्था) अनेन प्रकारेण (इतराः) अर्वाचीनाः (गिरः) वाचः (एभिः) (वर्धासे) वर्द्धसे (इन्दुभिः) सोमलताभिश्चन्द्रकिरणैर्वा ॥१६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या वयं विद्या अधीत्य सर्वानुपदिशेमेतीच्छन्ति तेऽस्मान् प्राप्नुवन्तु ॥१६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्या शिकून सर्वांना उपदेश द्यावा ही इच्छा बाळगतात त्या माणसांची आमची भेट व्हावी. ॥ १६ ॥